सिलावट नाम से ऐसा प्रतीत होता है कि पत्थरों को तराशने वाला या स्टोन मेसन। सिलावट जाति की जड़े या अस्तित्व 17वीं शताब्दी से मिलती हैं।
जैसा कि गूगल में और एक किताब जो कि बोधेश के महाराज फतेहसिंह राव गायकवाड की पुस्तक “The Palaces of India” में मिलता है कि सिलावट जाति के प्रतिनिधि व्यक्तियों को राजस्थान के महाराजाओं, राजाओं के दरबार में “State Architect” या “Royal Court of Architect” के सम्माननीय पद से प्रतिनिधित्व किया जाता था। इसी किताब में श्री आतित राम सिलावट का उल्लेख मिलता है और बताया है कि महाराजा के दरबार में “राजकीय वास्तुविद” के पद पर विराजमान थे और उन्होंने Lake Palace Udaipur का डिज़ाइन किया था।
यह जाति भारत के राजस्थान में इंद्रगढ़, जोधपुर, उदयपुर, जैसलमेर, अजमेर, जयपुर, नागौर, मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र में पाई जाती है। पाकिस्तान के होदेर, हैदराबाद और कराची में भी बसी है। आर्थिक और सामाजिक विकास में अन्य जातियों से पिछड़ जाने के कारण इन्हें 1977 में मध्य प्रदेश सरकार ने पिछड़ी जाति घोषित किया। सिलावट जाति मध्यप्रदेश में मुख्य रूप से भोपाल, नरसिंहपुर, रायसेन, सीहोरे, जबलपुर, मंडला, ग्वालियर में बसी है और मुख्य रूप से राज मिस्त्री का एवं कृषि कार्य करते हैं।
वर्तमान में उच्च शिक्षा प्राप्त कर सिलावट समाज के लोग सरकारी नौकरियों में भी उच्च पदों पर कार्यरत हैं। डॉक्टर, इंजीनियर बनकर समाज ने और प्रदेश में अच्छा नाम कमाया है। अमर शहीद भागीरथ सिलावट, देपालपुर, मध्यप्रदेश का नाम 1857 की क्रांति में गुमनाम नायक के रूप में मिलता है और उन्होंने आज़ादी के लिए अपनी जान लगा दी थी।
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